पसगवां ब्लॉक क्षेत्र में जीएसटी चोरी की हर विधि अपना रहे दुकानदार✍️
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रिपोर्ट - रुद्राक्ष मिश्रा
एक कर एक देश योजना के तहत मई 2017 में जीएसटी लागू किया गया है। जिसे तीन श्रेणियों में बांटा गया है। इसमें छोटे कारोबारियों से लेकर दूसरे देशों में कारोबार के भी करों को शामिल किया गया है। जीएसटी चोरी और वसूली के लिए आयकर विभाग की टीमें भी गठित हैं। इसके बाद भी कारोबार में जीएसटी की चोरी जोरों पर की जा रही है। इसके रोकथाम को बनी टीमें नाकाम साबित हो रही है। इन दिनों किराना,इलेक्ट्रॉनिक, सीमेंट, सरिया, बर्तन,मेडिकल स्टोर व कपड़े आदि की दुकानों पर धड़ल्ले से जीएसटी की चोरी की जा रही है।
ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर प्रदेश व केंद्र स्तरीय के कारोबार में आयकर विभाग की जीएसटी देश के विकास में सहायक होती है। जीएसटी से मिले रुपये को गरीबों, असहायों को जीवन जीने की मदद और अनाथ बच्चों की शिक्षा समेत जन हित का विकास किया जाता है। इसी लिए कर को महादान कहा जाता है। कर दाताओं को भी महत्वपूर्ण श्रेय दिया जाता है। सीजीएसटी, एसजीएसटी, आइजीएसटी श्रेणी के कर देश के विकास पर ही खर्च किया जाता है लेकिन पसगवां,उचौलिया,जंग बहादुर गंज में कारोबारियों ने तो कर चोरी करना ही सर्वश्रेष्ठ कार्य मान रखा है। उनका हर प्रयास जीएसटी चोरी के लिए ही होता है।यहां मुख्य बाजारों में सीमेंट- सरिया, बर्तन, कपड़े,किराना,इलेक्ट्रॉनिक सहित हजारों दुकानें हैं। जहां पर जीएसटी की चोरी की जा रही है।
फुटकर समान बिना बिल के होता है बिक्री करोड़ों की जीएसटी चोरी से विभाग को लग रही चपत,जांच हो तो निकलेगी करोड़ों की हेराफेरी
प्रतीकात्मक फोटो
नाम न छापने की शर्त पर एक कारोबारी ने बताया कि जीएसटी की चोरी बड़ी आसानी से हो जाती है। किसी भी सामानों की खरीदारी करते समय 15 फीसद की वस्तु को पक्के पर्चे पर जीएसटी कटाकर व 85 फीसद की वस्तु को कच्चे पर्चे पर खरीदारी करके जीएसटी की लंबी रकम हजम कर जाते हैं वहीं कच्चे पर्चे पर कारखानों से माल मंगाकर ग्रामीण क्षेत्र में बड़ी आसानी से फुटकर में बेंचा जाता है।
कच्चे पर्चे पर बेंच जाता है सामान,नही पड़ रही जिम्मेदारों की नजर
कई व्यापारियों की तरफ से कहा गया कि कई बार कंज्यूमर खुद ही बिल नहीं लेते तो इसमें दुकानदार क्या कर सकता है? अफसरों ने कहा कि बिल तो देना ही है। कहा कि ज्यादातर किराना,मेडिकल स्टोर,हार्डवेयर शाप पर बिल नहीं काटा जाता है। और भी कई दुकानें हैं, जहां पर चाहे सामान 500 रुपए का बेचा जाए या फिर 40 हजार रुपए का, वहां बिल नहीं दिया जाता है।नियमों के मुताबिक सिर्फ पक्का बिल ही मान्य होता है। अगर कोई खाली पेज पर लिखकर या कच्चा बिल दे तो ये मान्य नहीं है। नियमों के अनुसार कंज्यूमर की भी ड्यूटी है कि 200 रुपए से ज्यादा का सामान अगर वह खरीदता है तो बिल जरूर ले। क्योंकि इससे सरकार को टैक्स आएगा। साथ ही अगर उसने जो सामान खरीदा होगा, अगर वह खराब या गड़बड़ मिलता है तो बिल के जरिए वह कंज्यूमर फोरम में भी जा सकता है।
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